छत्तीसगढ़ की धरती हमेशा से अपनी सादगी, मेहनत और अपनापन के लिए जानी जाती है। यही सोच लेकर बना संगठन छत्तीसगढ़िया क्रांति सेना, जिसने नारा दिया – “छत्तीसगढ़, छत्तीसगढ़ी अउ छत्तीसगढ़िया के रखवारी।” इस संगठन का मकसद था कि छत्तीसगढ़ के लोगों को उनके हक़, उनकी भाषा और उनकी संस्कृति का सम्मान मिले।nmयह बात वाकई अच्छी और ज़रूरी भी है। हर प्रदेश को अपनी पहचान पर गर्व होना चाहिए। लेकिन हाल के दिनों में यह संगठन अपने काम से ज़्यादा विवादों के लिए सुर्खियों में रहा है।
अमित बघेल और विवादों की
राजनीति
छत्तीसगढ़िया क्रांति सेना के प्रमुख नेता अमित बघेल कई बार अपने बयानों की वजह से चर्चा में रहे हैं।
उन पर जैन मुनियों, सिंधी समाज और अग्रवाल समाज के लोगों के प्रति अपमानजनक बातें कहने के आरोप लगे।
इन बयानों से समाज में ग़ुस्सा फैला और कई जगह विरोध प्रदर्शन हुए। इन घटनाओं से यह सवाल उठने लगा कि जो संगठन छत्तीसगढ़ की संस्कृति और एकता की बात करता था, वही अब क्यों किसी धर्म या समाज को नीचा दिखाने की कोशिश कर रहा है? ऐसे शब्द न केवल लोगों की आस्था को ठेस पहुँचाते हैं, बल्कि पूरे आंदोलन की साख को भी कमजोर करते हैं।
स्थानीय मुद्दा ज़रूरी,
लेकिन दूसरों का सम्मान
भी उतना ही ज़रूरी
छत्तीसगढ़ के लोगों का
हक़, रोज़गार और सम्मान की बात
करना बिल्कुल सही है। अपने प्रदेश और अपनी
मिट्टी के लिए आवाज़ उठाना हर नागरिक का अधिकार है।लेकिन अगर इस आवाज़ में दूसरे
समाज, धर्म या जाति के लिए
नफ़रत मिल जाए, तो आंदोलन की असली भावना
खो जाती है।स्थानीय हक़ की लड़ाई कभी भी नफ़रत या भेदभाव पर नहीं टिक सकती। अगर हम अपने हक़ के लिए लड़ते हुए दूसरों की
आस्था को चोट पहुँचाएँगे, तो समाज में एकता नहीं,
बल्कि दूरियाँ बढ़ेंगी।
राजनीति की दिशा या
व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा?
कई लोगों का मानना है कि अब अमित बघेल और उनका संगठन समाजसेवा से ज़्यादा राजनीति में सक्रिय हो गया है।
उनकी रैलियों और बयानों में अक्सर राजनीति की झलक साफ़ दिखाई देती है। “जोहार छत्तीसगढ़ पार्टी” का गठन भी इस बात का संकेत है कि अब आंदोलन का मकसद जनता की सेवा से हटकर राजनीतिक पहचान बनाने की ओर बढ़ गया है। ऐसा लगने लगा है कि छत्तीसगढ़िया क्रांति सेना का नाम अब राजनीतिक प्रचार का माध्यम बनता जा रहा है। गौरतलब है कि - छत्तीसगढ़ की असली ताकत उसकी विविधता और भाईचारा है। यहाँ हर समाज – चाहे वह सिंधी, अग्रवाल, जैन, या आदिवासी हो – सबने मिलकर इस राज्य की पहचान बनाई है। अगर किसी संगठन को वाकई छत्तीसगढ़ के हक़ की चिंता है, तो उसे सबको साथ लेकर चलना होगा। किसी की आस्था या जाति पर चोट पहुँचाकर कभी भी सामाजिक न्याय नहीं पाया जा सकता।


