बस्तर… एक ऐसा इलाका जिसे दशकों तक नक़्शे पर केवल जंगलों के लिए नहीं, बल्कि खून-खराबे और नक्सलवाद की सबसे भयावह परछाईं के लिए पहचाना गया। गांवों के बीच बसे शांत पहाड़, नदी-नाले और घने जंगल — यही जगह माओवादी संगठन CPI-Maoist के सबसे छोटे लेकिन सबसे घातक नाम माड़वी हिड़मा का अड्डा रहे। हिड़मा कोई साधारण नक्सली नहीं था — वह ऐसा नाम था जिसे सुनते ही सुरक्षा एजेंसियों की बैठकों में रणनीति बदल जाती थी। उसकी हिंसक छापामार रणनीति और जंगल युद्धकला के कारण उसे नक्सली आंदोलन का “सबसे खतरनाक कमांडर” कहा जाता था। हिड़मा बस्तर के सुकमा-कांगेर क्षेत्र के एक आदिवासी गाँव में पैदा हुआ। सामान्य आदिवासी परिवार, बचपन में गरीबी, न शिक्षा का माहौल, न आगे बढ़ने के अवसर — ऐसे माहौल ने हिड़मा को संगठन के संपर्क में जल्दी ला दिया। कहा जाता है कि हिड़मा ने 10वीं तक पढ़ाई की, बाकी शिक्षा जंगलों और हथियारों से मिली।शुरू-शुरू में वह एक संगठकीय धावा-दस्ता में शामिल हुआ, धीरे-धीरे उसकी जंगली रणनीति, तेजी और हिंसा ने नक्सली नेतृत्व को प्रभावित किया। कुछ ही वर्षों में वह PLGA बटालियन-1 तक पहुँच गया — यानी नक्सलियों की सबसे शक्तिशाली और क्रूर लड़ाकू इकाई का मुखिया।
वह दिमाग, जिसने हमलों को नई परिभाषा दी- हिड़मा की विशेषता केवल गोली चलाने में नहीं, बल्कि दिमागी खेल में थी।वह जानता था — सुरक्षा बल कैसे सोचते हैं, कैसे चलते हैं और कब ढील छोड़ते हैं। तभी तो: जंगलों के अंदर घात लगाकर हमला करना, हाईवे और पटरियों पर IED विस्फोट, जवानों को घेरे में डालना और जंगल में
गायब हो जाना, नक्शों की बजाय स्थानीय आदिवासियों और भूगोल का इस्तेमाल.
बड़े आतंकी हमलों का मास्टरमाइंड - बस्तर की सुरक्षा इतिहास में जितने भी सबसे घातक हमले दर्ज हैं, लगभग हर जगह हिड़मा का नाम जुड़ा मिलता है। उस पर दर्जनों हमलों के मास्टरमाइंड होने का आरोप लगा, जिनमें सैकड़ों जवान शहीद हुए। इसी वजह से उस पर 45 लाख से 1 करोड़ रुपये तक का इनाम घोषित हुआ। सरकारी खुफिया एजेंसियों और ग्रेहाउंड, CRPF, कोबरा जैसे विशेष बल वर्षों से उसकी तलाश में थे — परंतु जंगल उसकी असली ढाल थे। क्या कारण था की वह सुरक्षा एजेंसियों के लिए “सबसे बड़ा टारगेट” बना जिसमे कई बड़े नक्सली लीडर मारे गए, गिरे, पकड़े गए या आत्मसमर्पण कर चुके थे। पर हिड़मा जंगल में टिका रहा — और हर बार और भी हिंसक होकर सामने आया। उसके ज़िंदा रहने का मतलब था: बस्तर में नक्सलवाद का भविष्य बचा रहना, भर्ती और विचारधारा को गति मिलना और संगठन का आत्मविश्वास रूप लेना यानी वह सिर्फ एक आदमी नहीं — नक्सलवाद के बचे-खुचे अस्तित्व का अंतिम आधार बन चुका था।
क्यों यह घटना निर्णायक मानी जा रही - बड़े नक्सली हमलों के बाद
सुरक्षा बलों ने हिड़मा को पकड़ना या खत्म करना प्राथमिक लक्ष्य बना दिया था। जैसे-जैसे
जंगलों में पुनर्वास बढ़ा, आदिवासी गांव मुख्यधारा
में लौटे, आत्मसमर्पण बढ़ा —
हिड़मा का नेटवर्क कमजोर पड़ने लगा। बात यहां
तक आ गई कि उसके लिए सुरक्षित ठिकाने कम पड़ते गए और उसे सीमावर्ती जंगलों में शरण
लेनी पड़ी। इसी बीच सूचना के आधार पर सुरक्षा बलों ने योजना बनाई — लंबा इंतज़ार किया, धैर्य रखा, और फिर एक कम्बिंग ऑपरेशन
में उसे घेरा। मुठभेड़ घंटों चली — गोलीबारी के बाद हिड़मा
समेत उसके नजदीकी कमांडरों का अंत हुआ।
इस घटना के बाद सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि हिड़मा का मारा जाना सिर्फ एक व्यक्ति का अंत
नहीं, बस्तर के नक्सलवाद के
आखिरी मजबूत किले का गिरना है। हिड़मा के खत्म होने से माओवादी आंदोलन एक ऐसे मोड़
पर पहुंच चुका है जहाँ नेतृत्व संकट है, आत्मसमर्पण तेज है, नए युवाओं की भर्ती
लगभग बंद, जंगलों में ठिकाने टूट चुके हैं हो सकता है कुछ समय के लिए बिखरे हुए
मोर्चों से छोटे हमले हों — पर बस्तर में बड़े पैमाने
की जंगल-युद्ध रणनीति जो हिड़मा के नाम पर चलती थी अब लगभग खत्म मानी जा रही है।
कुछ सुलगते सवाल :- PLGA बटालियन-1 का मुखिया था, उसके साथ मुठभेड़ के समय कम नक्सली क्यों थे? जिस पर कुछ विशेषज्ञों का मत है की हिड़मालगातार दबाव में था जिस वजह से वह अपना ठिकाना बार-बार बदल रहा था सुरक्षा बलों की रणनीति पिछले कुछ समय से बड़े नेताओं पर केंद्रित थी। जिस वजह से वह ज्यादा लोगों के साथ यात्रा नहीं कर पा रहा था, बड़े खेमे में रहना खुफिया एजेंसियों के लिए जल्दी पता चल जाता इसलिए उसे कम संख्या में बॉडीगार्ड / प्रशिक्षित कैडर के साथ छिपना पड़ता था, यानी ज्यादा लोग साथ रखना खतरा बन चुका था।
जबकि ऑपरेशन अचानक नहीं, बल्कि “लंबे इंतज़ार” में प्लान किया गया - कई बार सुरक्षा एजेंसियाँ इंतज़ार करती हैं कि टारगेट अकेला या छोटे समूह में हो, ताकि नुकसान कम हो, किसी गांव/आदिवासी पर क्रॉसफायर का खतरा न हो, संगठन बचाव के लिए बड़े दस्ते न भेज पाए. संभव है कि सुरक्षा एजेंसियों को पता था कि हिड़मा कम साथियों के साथ है, तभी ऑपरेशन को ट्रिगर किया गया।


