बस्तर — जो कभी नक्सलियों
का सबसे मज़बूत गढ़ माना जाता था — अब बिल्कुल बदल चुका है। सालों से चल रहे संघर्ष और सुरक्षा
बलों की लगातार कोशिशों के बाद अब हालत ये है कि नक्सलियों के लिए छिपना, बचना या पुराने ढर्रे पर काम करना लगभग
नामुमकिन हो गया है।पिछले कुछ महीनों में बड़े पैमाने पर नक्सलियों ने आत्मसमर्पण
किया है। सरकार की नई नीति, सुरक्षा एजेंसियों
की सटीक रणनीति और स्थानीय लोगों के सहयोग से अब जंगलों में रहना आसान नहीं रहा।
गौरतलब है की पहले के मुकाबले अब सुरक्षा बलों का तरीका बहुत बदला है। अब सिर्फ
जंगलों में तलाशी नहीं होती, बल्कि ड्रोन से
नज़र रखी जाती है, सैटेलाइट से
मूवमेंट ट्रैक होते हैं और स्थानीय लोगों की मदद से खुफिया जानकारी भी जल्दी मिल
जाती है।
“ऑपरेशन प्रहार” जैसे अभियानों ने नक्सली नेताओं पर सीधा दबाव बनाया है। अब
उनके पास न तो पुरानी सप्लाई लाइन बची है, न भागने का आसान रास्ता। गाँव-गाँव तक पुलिस और फोर्स की
मौजूदगी से जंगल में छिपना पहले जैसा आसान नहीं रहा।
आत्मसमर्पण की लहर — बड़े समूहों ने हथियार छोड़े
अक्टूबर 2025 के दौरान बस्तर और दण्डकारन्या इलाके में सैकड़ों नक्सलियों ने एक साथ आत्मसमर्पण किया। कई जगहों पर 150 से ज़्यादा हथियार भी सौंपे गए।
ये सिर्फ एक घटना
नहीं, बल्कि इस बात का
संकेत है कि अब अंदर से संगठन टूटने लगा है।
कांकेर और उत्तर बस्तर जैसे इलाकों में भी कई छोटे-छोटे
समूहों ने खुद को पुलिस के हवाले किया। पहले जो डर और अविश्वास था, अब वो खत्म होता दिख रहा है। आत्मसमर्पण
अब लगातार चलने वाली प्रक्रिया बन गया है। जबकि एक कारण बस्तर में अब सड़कें बन
रही हैं, मोबाइल टावर लग गए
हैं, बच्चों को स्कूल
और कॉलेज तक पहुंचने में दिक्कत नहीं होती। गांवों में महिला समूह और स्वरोजगार
योजनाएँ शुरू हुईं — जिससे लोगों के
पास काम के मौके बढ़े।
पहले जहाँ “सरकार” की जगह “दल” का असर था, वहीं अब लोग खुद तय कर पा रहे हैं कि
उन्हें हिंसा नहीं, विकास चाहिए। यही
वजह है कि अब युवा बंदूक से ज़्यादा नौकरी, कारोबार और पढ़ाई में दिलचस्पी दिखा रहे हैं।
जानकर कहते हैं अभी भी कुछ चुनौतियाँ
बाकी हैं
हालात बेहतर जरूर हुए हैं, लेकिन काम अभी बाकी है। कुछ चीजें हैं जिन पर और ध्यान देने
की जरूरत है: पुनर्वास सही हो: जो नक्सली आत्मसमर्पण कर चुके हैं, उन्हें सिर्फ पैसे देना काफी नहीं।
उन्हें रोज़गार, रहने की जगह और
समाज में सम्मान भी मिलना चाहिए। पारदर्शिता ज़रूरी है: मुआवजा और योजनाओं
में पारदर्शिता रहे, ताकि किसी को लगे
नहीं कि उसके साथ भेदभाव हुआ है। निगरानी बनी रहे: कुछ गुट अब भी सक्रिय हैं। इसलिए सुरक्षा बलों को सतर्क
रहना होगा ताकि पुराने हालात फिर से न लौटें। अब ज़रूरत सिर्फ
इतनी है कि जो लौट आए हैं, उन्हें समाज में
अपनी पहचान और सम्मान मिल सके। तभी यह बदलाव स्थायी बनेगा और बस्तर सच में शांति
और विकास की नई दिशा में आगे बढ़ेगा।
इस लेख के संकलन और विश्लेषण में नक्सल मामलों से जुड़ी
जानकारी तथा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से प्राप्त इनपुट के लिए नरेश मिश्रा (IBC 24), विकास तिवारी( रानू ) BASTAR TALKIES और संजय ठाकुर ( Vistaar News ) का विशेष योगदान रहा। उनके
मार्गदर्शन ने इस समीक्षा को और अधिक प्रामाणिक स्वरूप दिया।


