जगदलपुर का ऐतिहासिक गंगा मुंडा तालाब आज गंदगी और लापरवाही का शिकार है। कभी पीने योग्य रहा यह तालाब अब सफाई की कमी और प्रदूषण से जूझ रहा है। छठ पर्व जैसे धार्मिक अवसरों पर नगर निगम द्वारा अस्थायी सफाई तो की जाती है, पर स्थायी समाधान आज भी अधूरा है। जनता की मांग है कि महापौर और प्रशासन इस तालाब के स्थायी सौंदर्यीकरण और जल संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाएं। गंगा मुंडा तालाब को पुनर्जीवित करना न सिर्फ पर्यावरणीय बल्कि सांस्कृतिक जिम्मेदारी भी है।
जगदलपुर की पहचान गंगा मुंडा तालाब – अब उपेक्षा का शिकार
छत्तीसगढ़ के जगदलपुर शहर की खूबसूरती उसके ऐतिहासिक तालाबों से जुड़ी है। इनमें सबसे प्रमुख है गंगा मुंडा तालाब, जो कभी शुद्ध पेयजल का स्रोत माना जाता था। लेकिन आज यह तालाब गंदगी, जलकुंभी और नगर निगम की लापरवाही का प्रतीक बन चुका है।
छठ पर्व जैसे धार्मिक अवसरों पर जब सूर्य की उपासना के लिए श्रद्धालु तालाब की ओर आते हैं, तब इसकी दुर्दशा सामने आती है। नगर निगम हर बार तात्कालिक सफाई तो कर देता है, पर सालभर कोई ध्यान नहीं देता। स्थानीय लोगों का कहना है कि तालाब में शहर के कई हिस्सों का नालों का पानी सीधे मिल रहा है, जिससे इसका जल दूषित हो गया है। जलकुंभी ने इसे पूरी तरह अपनी चपेट में ले लिया है। नतीजा यह है कि तालाब के पास खड़ा होना भी मुश्किल हो जाता है। सालों से इसके सौंदर्यीकरण और सफाई पर करोड़ों रुपए खर्च किए जा चुके हैं, लेकिन परिणाम शून्य हैं। अगर यह स्थिति यूं ही बनी रही, तो आने वाले वर्षों में यह तालाब पूरी तरह सूख सकता है।
महापौर और नगर निगम की जिम्मेदारी
जगदलपुर नगर पालिका निगम के गठन के बाद से कई बार दलपत सागर और गंगा मुंडा तालाब की सफाई के नाम पर अभियान चले। परंतु इनमें से कोई भी स्थायी रूप से सफल नहीं हुआ। अब जरूरत है कि महापौर स्वयं इसकी जिम्मेदारी लेकर ठोस निर्णय लें। एक स्थायी समिति बनाकर तालाब की सफाई, जलकुंभी हटाने और नालों के जल को रोकने का कार्य प्राथमिकता में रखा जाए।
स्थायी समाधान ही है असली सफाई- हर वर्ष छठ और तीजा जैसे त्योहारों पर अस्थायी सफाई करना पर्याप्त नहीं है। तालाब की वास्तविक सफाई तभी संभव है जब नालों के प्रवाह को तालाब से जोड़ा न जाए, जैविक अपशिष्ट रोकथाम की व्यवस्था बने,
स्थानीय समुदाय को “तालाब बचाओ अभियान” से जोड़ा जाए
गंगा मुंडा तालाब जगदलपुर की आत्मा है- गंगा मुंडा तालाब सिर्फ एक जलाशय नहीं, बल्कि जगदलपुर की सांस्कृतिक पहचान है।अब वक्त है कि प्रशासन और महापौर सिर्फ घोषणा नहीं, बल्कि कार्रवाई की पहल करें।
यदि नगर निगम ने ठान लिया, तो गंगा मुंडा तालाब फिर से अपने पुराने स्वरूप में लौट सकता है और शहर की शोभा बन सकता है।


