छत्तीसगढ़ की धरती हमेशा से अपनी संस्कृति, बोली और लोककला के लिए जानी जाती रही है। मगर इस बार चर्चा में है बस्तर — और वजह है एक नई छत्तीसगढ़ी फिल्म “माटी”, जो नक्सलवाद जैसे संवेदनशील मुद्दे पर एक अनोखी प्रेम कहानी के ज़रिए अपनी बात कहने की कोशिश करती है।
इस फिल्म की खासियत यह है कि इसमें कोई बड़ा स्टार नहीं है। न कोई ग्लैमर, न भारी-भरकम बजट। “माटी” के लगभग सभी कलाकार बस्तर क्षेत्र से हैं — वही बस्तर जो दशकों तक नक्सली हिंसा के साए में रहा, मगर अब कला और संस्कृति के ज़रिए अपनी नई पहचान गढ़ने की कोशिश कर रहा है।
स्थानीय कलाकारों की बड़ी छलांग- फिल्म के निर्देशक अविनाश प्रसाद लंबे समय से बस्तर की लोकभाषा और संस्कृति को गीत-संगीत तथा लघु फिल्मों के माध्यम से सामने लाते रहे हैं। लेकिन “माटी” उनका अब तक का सबसे बड़ा प्रयास माना जा सकता है। यह सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि यह सवाल भी है कि क्या स्थानीय बोली और कलाकारों के दम पर प्रदेश स्तर की फिल्म इंडस्ट्री खड़ी की जा सकती है?
प्रेम और नक्सलवाद का संगम- “माटी” का ट्रेलर हाल ही में जारी हुआ, जिसने दर्शकों को सोचने पर मजबूर कर दिया है। शीर्षक भले “माटी” है, पर ट्रेलर में नक्सलियों की कहानी, संघर्ष और प्रेम की उलझी हुई परतें दिखती हैं। यह विरोधाभास फिल्म को रहस्यमय बनाता है। फिल्म यह दिखाने की कोशिश करती है कि बंदूक थामने वाले भी इंसान हैं — जिनके पास अपने सपने, भावनाएं और प्रेम करने का हक़ है। सवाल यह भी उठता है कि क्या यह कहानी नक्सलवाद के अंत की ओर बढ़ते बस्तर की नई सोच का प्रतीक है?
संगीत और संवाद की धरती से उठती आवाज़- फिल्म के गीत-संगीत में बस्तर की स्थानीयता झलकती है — ढोल, मांदर, और लोकधुनों का मेल फिल्म को असली छत्तीसगढ़ी रंग देता है। निर्देशक ने कोशिश की है कि दर्शक न केवल कहानी देखें, बल्कि उसे महसूस करें। इस दौर में जब भोजपुरी और साउथ इंडियन सिनेमा अपने स्टारडम और तकनीकी मजबूती से दर्शकों को बांधे हुए हैं, “माटी” एक अलग राह चुनती दिखती है — भावना और माटी की सोंधी खुशबू से सजी राह।
क्या “माटी” छत्तीसगढ़ी सिनेमा को नई पहचान दिला पाएगी?
अंत में गीत संगीत और ट्रेलर के परिदृश्य को देख UNCUTCGNEWS.IN की अब तक की समीक्षा यह है की :-
और शायद यही बस्तर की माटी की सबसे बड़ी खूबी है।


